चौरी - चौरा घटना पर विशेष
आज तक़रीबन 99 साल हो गये,चौरी-चौरा की घटना को हुए।4 फरवरी 1922 ई.को चौरी-चौरा की यह ऐतिहासिक घटना घटी थी।इस घटना में ब्रिटिश सरकार के नीतियों से परेशान हो कर किसान और आम जनमानस ने गोरखपुर के चौरी-चौरा के पास के एक ब्रिटिश पुलिस थाने में आग लगा दी थी।इस घटना-क्रम में कुछ ब्रिटिश-भारतीय सिपाहियों की मौत हो गयी थी।घटना के बाद ब्रिटिश फौज ने जनता और आंदोलनकारी नेताओं का बड़ी क्रूरता से दमन किया था।आम-जनमानस के दमन का ऐसा उदाहरण भारतीय इतिहास में बड़ा कम मिलता है।इस घटना से दुःखी हो कर गांधी जी ने 12 फरवरी 1922 ई.को असहयोग आन्दोलन वापस ले लिया था।इस घटना में सज़ा पाए देशभक्तों का मुक़द्दमा पंडित मदन मोहन मालवीय ने भी लड़ा था और कई देशभक्तों की सजा माफ़ करवाई थी।इस घटना क्रम से जुड़ा हुआ एक महत्वपूर्ण तथ्यात्मक संदर्भ यह है कि दुर्भाग्य से भारत में शायद चौरी-चौरा एक मात्र जगह हैं जहाँ एक ही घटना संदर्भ के निमित्त ब्रिटिश सिपाहियों और भारतीय देशभक्त जनमानस दोनों के स्मृति-स्मारक बने हुए हैं। बिपिन चंद्र,शाहीद अमीन व सुभाष चन्द्र कुशवाहा जैसे प्रमुख इतिहासकारों ने अपने इतिहास लेखन में बड़ी बेबाक़ी से इस घटनाक्रम के गम्भीरता की व्याख्या की है। भारतीय इतिहास में चौरी-चौरा की यह घटना ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ किसान और आम जनता के हक़ की लड़ाई का पर्याय है।आइये हम सभी चौरी-चौरा के शहीद भगवान दास, लाल मुहम्मद सैन, बंशी , बुद्धु केवट, बिक्रम अहीर जैसी उन तमाम किसान पुण्य आत्माओं के लिए प्रार्थना करें जो हमारी आज़ादी की लड़ाई लड़ते हुए इतिहास का कागज़ी दस्तावेज़ बन के रह गये।
इतिहासकार सुभाष चंद्र कुशवाहा की पुस्तक चौरी-चौरा से ली गई हैं।