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Thursday, December 23, 2021

राष्ट्रीय गणित दिवस

राष्ट्रीय गणित दिवस




 

सन् 1976 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में ट्रिनिटी कॉलेज के रेन लाइब्रेरी में जॉर्ज . एंड्रूज नामक एक गणितज्ञ ने सौ से ज्यादा पन्नों का एक नोटबुक एक बक्से में उपेक्षित पड़ा पाया। एंड्रूज ने जब उस नोटबुक को देखा तो उनके आश्चर्य का ठिकाना रहा। उनके पी-एच.डी थीसिस में किए गए मॉक थीटा फंक्शन पर कुछ सूत्र वहाँ पर थे। आज भी वह नोटबुक और उसमें लिखे छह सौ से ज्यादा गणितीय सूत्र एक बड़ी पहेली हैं। इन सूत्रों में से अधिकतर मॉक थीटा फंक्शंस और स्टैण्डर्ड इक्वेशंस से संबन्धित हैं। नोटबुक में सूत्र तो दिए गए थे, लेकिन उनको सिद्ध (प्रूफ) नहीं किए गए थे। इन सूत्रों में ज़्यादातर ऐसी थीं, जिन्हें कई दशक बीत जाने के बाद भी सुलझाया नहीं जा सका है। अमेरिका के इलिनाय यूनिवर्सिटी के गणितज्ञ ब्रूस बर्नड्ट ने इस नोटबुक के बारे में कहा था, ‘इस लापता नोटबुक की खोज ने गणित की दुनिया में वैसी ही खलबली पैदा कर दी है, जैसी बीथोफन की 10वीं सिम्फनी की खोज पर संगीत की दुनिया में होती।गौरतलब है कि आज भी ब्रूस बर्नड्ट इस नोटबुक के सूत्रों और थ्योरम्स को जांच करने और सिद्ध करने की कोशिश में जुटे हुए हैं।

क्या आप जानते हैं कि यह नोटबुक किसकी थी? यह नोटबुक थी गणितज्ञों के गणितज्ञऔर 'संख्याओं के जादूगर' कहे जाने वाले भारत के महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की। रामानुजन का गणितीय अनुसंधान उस श्रेणी का है, जिसे हम प्योर मैथेमैटिक्स कहते हैं। इसका स्तर भी इतना ऊंचा है कि काफी लंबा अरसा गुजर जाने के बावजूद कॉलेज के गणित के सिलेबस में भी इसे रखना मुमकिन नहीं हुआ है। रामानुजन बीसवीं सदी के महानतम गणितज्ञों में से एक माने जाते हैं। कहते हैं कि नंबर थ्योरी पर उनकी टक्कर का गणित में और कोई भी नहीं हुआ है। बहरहाल, हम आज रामानुजन को इसलिए याद कर रहे हैं क्योंकि आज ही के दिन 133 साल पहले इस महान प्रतिभा का जन्म हुआ था।

 

गणित के क्षेत्र में हीरे की तरह चमकने वाले श्रीनिवास रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 1887 को तमिलनाडु के इरोड में हुआ था। उनके परिवार का गणित विषय से दूर-दूर तक का कोई नाता नहीं था। उनके पिता श्रीनिवास आयंगर एक कपड़ा व्यापारी के यहाँ मुनीम का काम करते थे। बेहद साधारण परिवार में जन्म लेने के बावजूद रामानुजम अद्वितीय प्रतिभा, तर्कशक्ति और सृजनात्मकता के गुणों से सम्पन्न थे। रामानुजम बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के बालक थे और मद्रास यूनिवर्सिटी से सन् 1903 में उन्होंने दसवीं की परीक्षा कई पुरस्कारों के साथ पास की। इसी साल उन्होंने क्यूब और बायक्वाडरेटिक इक्वेशन को हल करने का सूत्र खोज निकाला। वह अपना समय का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल गणित के जटिल सवालों को हल करने में बिताते थे। समय के साथ-साथ रामानुजन का गणित के प्रति रुझान बढ़ता ही गया। फलस्वरूप 12वीं की परीक्षा में गणित को छोड़कर वह अन्य सभी विषयों में फेल हो गए। बाद में मद्रास के एक कालेज में दाखिला लिया। मगर यहाँ भी गणित को छोड़कर बाकी विषयों में रामानुजन की उपलब्धि निराशाजनक ही रही थी। अगले साल फिर कोशिश की, मगर इस बार भी नाकामयाब ही रहे। अतः बिना डिग्री लिए ही रामानुजन को औपचारिक अध्ययन छोड़ना पड़ा। हालांकि गणित में उनकी व्यस्तता में कोई कमी नहीं आई! 

इसी बीच रामानुजन का विवाह भी हो गया। अब उनके ऊपर पारिवारिक ज़िम्मेदारियां भी थीं। और इसके बाद विश्वविद्यालय की डिग्री के बिना वह एक नौकरी की तलाश में निकल पड़े। बहुत कोशिशों के बावजूद उन्हें नौकरी नहीं मिली तो उन्होंने अपने रिश्तेदार और पुराने मित्रों से इस संबंध में मदद माँगी। वे अपने पूर्व शिक्षक प्रोफेसर अय्यर की सिफारिश पर नैल्लोर के तत्कालीन कलेक्टर आर. रामचंद्र राव से मिले जो कि उस समय इंडियन मैथमैटिकल सोसाइटी के अध्यक्ष भी थे। आर. रामचंद्र राव ने रामानुजम की नोटबुक देखकर (जिसमें उन्होंने सूत्र और थ्योरम लिखे थे और उन्होंने स्वयं उसे स्वयं सिद्ध किया था) काफी विचार-विमर्श के बाद रामानुजम के लिए पच्चीस रुपये महीने पारितोषिक की व्यवस्था कर दी थी। इस दौरान रामानुजन ने इंडियन मैथमैटिकल सोसाइटीके जर्नल के लिए सवाल और उनके हल तैयार करने का काम किया। सन् 1911 में बरनौली नंबर्स पर प्रस्तुत रिसर्च पेपर से उन्हें बहुत प्रसिद्धि मिली। सन् 1912 में आर. रामचंद्र राव की सहायता से उन्हें मद्रास पोर्ट ट्रस्ट के लेखा विभाग में क्लास 3, चतुर्थ ग्रेड के क्लर्क की नौकरी मिल गई। मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में नौकरी करते हुए रामानुजम ने विशुद्ध गणित के अनेक क्षेत्रों में स्वतंत्र रुप से अपना शोध कार्य जारी रखा।

रामानुजन के जीवन में बड़ा बदलाव आया सन् 1913 में। जब उन्होने प्रसिद्ध अंग्रेज़ गणितज्ञ प्रो. जी. एच. हार्डी को 10 पन्ने की एक चिट्ठी लिखी। हार्डी को लिखे रामानुजन की चिट्ठी के कुछ अंश इस तरह हैं:

श्रीमान, मैं मद्रास में पोर्ट ट्रस्ट के एकाउंट विभाग में सालाना 20 पाउंड कमाने वाला एक क्लर्क हूं. मेरी उम्र लगभग 23 साल है। मेरे पास यूनिवर्सिटी की डिग्री तो नहीं है, लेकिन मैंने स्कूल की पढ़ाई पूरी की है। स्कूल छोड़ने के बाद मैं खाली वक्त में गणित पर काम करता हूं। मैं उस पारंपरिक कोर्स से कभी नहीं गुजरा जो यूनिवर्सिटी में पढ़ाई जाती है, लेकिन मैंने अपने लिए एक नया रास्ता बनाया है। मैंने डायवर्जेन्ट सीरीज पर विशेष शोध किया है और जो नतीजे आए हैं उसे स्थानीय गणितज्ञ चौंकाने वाला बता रहे हैं।

रामानुजन ने इस चिट्ठी में स्वयं द्वारा खोजे गए थ्योरम्स को भी अलग से संलग्न किया। संलग्न पृष्ठों में बीजगणित, त्रिकोणमिति, और कैलकुलस की शब्दावली में अपने निष्कर्षों को लिखा था। रामानुजन ने हार्डी को लगभग 120 प्रमेयों जो कि निश्चितात्मक-अवकलन के मान निकालने, अनंत श्रेणियों के योग निकालने, श्रेणियों को समाकलनों से परिवर्तित करने, और इनका निकटतम मान निकालने आदि से संबंधित थीं। पहली नजर में हार्डी को यह चिट्ठी किसी शेखचिल्ली की गप्प लगी। लेकिन जब उन्होंने गौर से इसे देखा तो इनमें बहुत से थ्योरम्स ऐसे थे जो उन्होंने कभी देखे थे और सोचे थे। बहुत कोशिशों के बावजूद हार्डी को रामानुजन के थ्योरम्स के सिर-पैर नहीं मिले। हार्डी ने अपने सहयोगी जे..लिटिलवुड के साथ मिलकर रामानुजन् के कार्य की गम्भीरता से जाँच की। इसके बाद हार्डी को यह समझ में गया कि यह कोई शेखचिल्ली नहीं बल्कि गणित का बहुत बड़ा विद्वान है जिसकी प्रतिभा को दुनिया के सामने लाना बेहद जरूरी है। 

हार्डी ने रामानुजन को कैम्ब्रिज आने का न्योता दिया। हिन्दू धर्मशास्त्रों में समुद्र पार करने के अंधविश्वास तोड़ते हुए उन्हें मनाया, जिसके बाद रामानुजन उस यूनिवर्सिटी में पहुंचे जहां अद्वितीय प्रतिभाओं का जन्म होता था। कैम्ब्रिज पहुँचते ही रामानुजन ने लिटिलवुड और हार्डी के साथ काम शुरू दिया था। रामानुजन 120 थ्योरम्स पहले ही हार्डी को भेज चुके थे। रामानुजन के नोटबुक्स में और बहुत कुछ ऐसा था जिसको प्रकाश में लाया जाना जरूरी था। रामानुजन के काम की लिटिलवुड और हार्डी ने मुक्त कण्ठ से सराहना की और उनकी तुलना जेकोबी तथा यूलर जैसे विद्वानों से की। हार्डी ने विभिन्न प्रतिभावान व्यक्तियों को सौ के पैमाने पर आँका है। ज़्यादातर गणितज्ञों को उन्होने 100 में से 30 के निकट अंक दिए हैं, कुछ विशेष प्रतिभाओं को 60 अंक दिए हैं। केवल रामानुजन को उन्होने 100 में से 100 अंक दिए हैं। हार्डी ने स्वयं को 30 अंक दिया था, जबकि सब जानते हैं कि हार्डी विश्व के महानतम गणितज्ञों में से थे। मुझे नहीं लगता इससे बड़ी रामानुजन या गणित में भारतीय विरासत की और क्या तारीफ हो सकती है! 

 

मजे की बात यह है कि हार्डी और रामानुजन दो विपरीत संस्कृतियों के प्रतिनिधि थे। जहां हार्डी घोर नास्तिक थे, वहीं रामानुजन कहा करते थे, ‘यदि कोई समीकरण अथवा सूत्र किसी भगवत विचार से मुझे नहीं भर देता तो वह मेरे लिए निरर्थक है।मार्च 1916 में रामानुजन को कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी ने उनके गणितीय कार्यों के मद्देनजर बी.. की उपाधि प्रदान की। सन् 1915 से 1918 तक उन्होंने कई रिसर्च पेपर्स लिखे। 6 दिसम्बर, 1917 को रामानुजन हार्डी के भागीरथ प्रयासों की बदौलत रॉयल सोसाइटी ऑफ लन्दनका फैलो चुन लिया गया। यह किसी भारतीय के लिए बहुत ही सम्मान की बात थी। इस बीच रामानुजन का स्वास्थ्य लगातार गिरता चला गया था। इन सम्मानों के कारण रामानुजन का खोया हुआ उत्साह पुनः लौट आया और उन्होंने प्रो. हार्डी को कई महत्वपूर्ण गणितीय निष्कर्ष भेजें।

एक राष्ट्रीय हीरो के तौर पर रामानुजन सन् 1919 में भारत लौटे। गणित में वह शिखर पर थे, लेकिन स्वास्थ्य साथ नहीं दे रहा था। डॉक्टरों ने पाया कि उन्हें टीबी हो गया है। केन ओनो और रॉबर्ट श्नाइडर न्यू साइंटिस्ट में प्रकाशित रिपोर्ट में लिखते हैं कि, ‘रामानुजन का स्वास्थ्य लगातार गिर रहा था। वह बिस्तर पर थे, लेकिन उनके दिमाग में केवल एक ही चीज घूम रही थी, गणित। उन्होंने 12 जनवरी 1920 को हार्डी को आखिरी चिट्ठी लिखी। इसमें मॉक थीटा फंक्शन के बारे में बताया था। तब तक इस रहस्यमयी सिद्धांत के बारे में सोचा भी नहीं गया था। इससे पहले कि हार्डी कोई जवाब दे पाते, उन्हें खबर मिली कि रामानुजन नहीं रहे। उनकी मृत्यु केवल 32 साल की उम्र में हुई। वह मनहूस तारीख थी 26 अप्रैल 1920’ 

रामानुजन के हार्डी को लिखे उस अंतिम चिट्ठी के सौ साल बाद भी गणितज्ञ अपना दिमाग खपाते रहे। वह उन सिद्धांतों को समझने की कोशिश कर रहे हैं, जिन्हें रामानुजन ने नहीं लिखा। इस महान गणितज्ञ के कामों के परिणामों की जांच कर रहे जीन-पियरे सेरे और पियरे डेलिग्ने ने बाद में गैलोज प्रतिनिधित्व का पता लगाया। इसके लिए फील्ड मेडल मिला। इस सम्मान को गणित का नोबल पुरस्कार माना जाता है। रामानुजन के सूत्रों का विस्तार कहां तक है, हमें अब भी यह नहीं पता। सिग्नल प्रोसेसिंग से लेकर ब्लैक होल फिजिक्स तक, आज उनके सूत्र हर जगह काम रहे हैं। जो सिद्धांत उन्होंने बीमारी की हालत में दी, उसका रहस्य हम 21वीं सदी में जाकर खोल पाए और पता लगा कि मॉक थीटा फंक्शन ब्लैक होल को समझने के लिए जरूरी है। रामानुजन के दिमाग में ऐसी कई बातें थीं। उन्हें गणित के सपने आते थे। उन सपनों ने अभी तक कई गणितज्ञों की नींद उड़ा रखी है!

सन् 1991 में पहली बार रामानुजन के सिद्धांतो की तरफ तब लोगों का ध्यान गया, जब एमआईटी के प्रोफेसर रॉबर्ट कैनिगेल ने बहुचर्चित बायोग्राफी मैन हू न्यू इनफिनिटी: जीनियस ऑफ रामानुजनलिखी। 25 साल बाद 2016 में, मैथ्यू ब्राउन ने इसी नाम से हॉलीवुड फिल्म बनाई जिसमें देव पटेल (स्लमडॉग मिलियनेयर) ने रामानुजन की भूमिका निभाई, और जेरेमी आइरन्स (काफ्का, लायन किंग) हार्डी बने. ब्राउन ने दोनों की दोस्ती को बेहद खूबसूरती फिल्म में उभारा है। क्विंट में इस फिल्म की समीक्षा करते हुए पल्लवी प्रसाद लिखती हैं: ‘2016 में रामानुजन पर बनी फिल्म पहली नजर में दर्शकों को बांध लेती है। 20वीं सदी की शुरुआत में मद्रास की चिलचिलाती गर्मी, अंकों की दुनिया के सपनों में खोए रामानुजन, हार्डी की शागिर्दी में कैम्ब्रिज में बीता उनका समय और प्रथम विश्व युद्ध के दौरान इंग्लैंड में स्वाभाविक चुनौतियां झेलता हुआ एक अशिक्षित और गरीब हिंदुस्तानी प्रतिभा- जो संस्कृति, धर्म और वर्ग की असमानताओं से संघर्ष कर रहा था। फिल्म में दर्शकों के पूरा ड्रामा मौजूद था। नीचे, ब्राउन की फिल्म के एक सीन से गणित के जुनून से जुड़े दो लोगों के बीच के तनाव को दिखाया गया है

रामानुजन की विलक्षण प्रतिभा के प्रति सम्मान प्रकट करते हुए भारत सरकार ने उनकी 125वीं जयंती के उपलक्ष्य में साल 2012 को राष्ट्रीय गणित वर्षके रूप में मनाने का निश्चय किया था और हर साल उनके जन्मदिन 22 दिसम्बर को राष्ट्रीय गणित दिवसके रूप में मनाने का फैसला किया। इसका उद्देश्य गणित के विकास को प्रोत्साहित करने के लिए हर जरूरी कोशिश करना और रामानुजन जैसे गणितीय प्रतिभाओं को पल्लवित-पुष्पित होने का अवसर देना है।